सीबीआई ने 2011 से 2013 के बीच कोयला खनन के लिए पर्यावरण मंजूरी हासिल करने में कथित भ्रष्टाचार को लेकर आदित्य बिड़ला समूह की देश की अग्रणी एल्युमीनियम उत्पादक हिंडाल्को के खिलाफ मामला दर्ज किया है। अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी ने केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय में तत्कालीन निदेशक टी चांदिनी को भी मंत्रालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर ओडिशा के झारसुगुडा के अत्यधिक प्रदूषित इलाके में तालाबीरा-1 खदान में खनन की अनुमति देने में विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) के सदस्य सचिव के तौर पर कंपनी का पक्ष लेने के लिए नामित किया है। केंद्रीय जांच एजेंसी ने करीब आठ साल की प्रारंभिक जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 2016 में प्रारंभिक जांच इन आरोपों के बाद शुरू की थी कि आदित्य बिड़ला प्रबंधन निगम प्राइवेट लिमिटेड (एबीएमसीपीएल) ने तालाबीरा से कोयला खदान के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने के लिए मंत्रालय के अधिकारियों को 2011 और 2013 के बीच कथित तौर पर भारी रिश्वत दी थी। जांच के निष्कर्षों से पता चलता है कि मंत्रालय ने 2006 में एक कंपनी के लिए सभी नई परियोजनाओं, मौजूदा उत्पादों के विस्तार और मौजूदा विनिर्माण इकाई में उत्पाद मिश्रण में किसी भी तरह के बदलाव के लिए पर्यावरण मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया था। जिन परियोजनाओं को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता थी, उन्हें ईएसी के माध्यम से जाना था, जिसमें विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ शामिल थे। नियामक प्राधिकरण ने ईएसी की सिफारिश के आधार पर यह मंजूरी दी थी। हिंडाल्को को तालाबीरा-1 खदान से 0.4 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) कोयले के खनन के लिए 2001 में अपनी पहली पर्यावरणीय मंजूरी मिली। इसके विस्तार के लिए जनवरी 2009 में एक और मंजूरी दी गई थी, जिससे खनन में 0.4 एमटीपीए से 1.5 एमटीपीए तक की वृद्धि हुई थी। दूसरी मंजूरी के लगभग एक महीने बाद, कंपनी ने अपनी क्षमता को 3 एमटीपीए तक दोगुना करने की मांग की, जिस पर ईएसी द्वारा विचार किया जाना था।
प्राथमिकी में कहा गया है कि यह बात सामने आई है कि कंपनी ने 2001 और 2009 में दी गई मंजूरियों का कथित तौर पर उल्लंघन करते हुए मंत्रालय द्वारा अनुमति से अधिक कोयला उत्पादन किया। कंपनी ने कथित तौर पर 2004-05 से 2007-08 और 2008-09 तक 3.04 एमटीपीए अतिरिक्त कोयले का खनन किया।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि यह तथ्य ईएसी द्वारा विचार की प्रक्रिया के दौरान सामने आया, जिसके निदेशक टी चांदिनी सदस्य सचिव थे। सीबीआई ने आरोप लगाया कि ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जांच के दौरान पुष्टि की कि तालाबीरा खदान झारसुगुडा के अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र में थी।
मंत्रालय के नियमों के अनुसार, अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में इन-पाइपलाइन परियोजनाएं या 13 जनवरी, 2010 के बाद आवेदन करने वाली परियोजनाओं को सलाहकार की मंजूरी के साथ सदस्य सचिवों द्वारा परियोजना प्रस्तावक को वापस किया जाना था।
जांच से पता चला कि चांदनी ने पूरी तरह से अवगत होने के बावजूद कि कंपनी पिछली पर्यावरण मंजूरी का उल्लंघन करते हुए अतिरिक्त कोयले का खनन कर रही थी, परियोजना को वापस नहीं किया, जैसा कि मंत्रालय के परिपत्र में निर्धारित किया गया है।
सीबीआई की प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है, 'बल्कि उन्होंने एचआईएल (हिंडाल्को) के प्रस्ताव के उलट काम किया जो एचआईएल के पक्ष में उनके आधिकारिक पद का दुरुपयोग है।
एजेंसी ने आरोप लगाया कि चांदिनी ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए हिंडाल्को को सूचित किया कि पर्यावरण मंजूरी देने के उनके प्रस्ताव पर ईएसी की 25 और 25 फरवरी 2010 को होने वाली अगली बैठक में विचार किया जाएगा।
उन्होंने कथित तौर पर सुनिश्चित किया कि मंजूरी जल्दबाजी में दी गई थी, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि हिंडाल्को पहले से ही मंत्रालय द्वारा दी गई मंजूरी का उल्लंघन कर रही थी, क्योंकि यह पहले से ही तालाबीरा -1 कोयला खदान से अतिरिक्त कोयले का खनन कर रही थी।